विद्यार्थी परिषद के मनीषी कार्यकर्ता स्व. सुनील उपाध्याय जी

Image
Sunil ji Upadyay

सुनील जी का जन्म, जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले में माता श्रीमति पदमावती एंव पिता श्री विद्या प्रकाश के घर 27 मार्च 1959 को हुआ था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी सुनील उपाध्याय जी में नेतृत्व की अपार क्षमता थी। बाल्यकाल में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आने से सुनील जी के इस गुण में परिपक्वता एवं दृढ़ निश्चितता का समावेश हुआ। वर्ष 1975 में जब देश पर आपातकाल थोपा गया तब सुनील जी दसवीं कक्षा के छात्र थे। आपातकाल के विरुद्ध छात्रों एवं युवाओं में अत्यन्त गुस्सा था और सुनील जी भी ऐसे युवाओं की पंक्ति में अग्रणी थे। छोटी सी आयु में ही इस काले कानून के विरुद्ध सुनील उपाध्याय जी ने सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। घर में बड़े भाई के विवाह की तैयारियां चल रही थी। इस लिए घर के सदस्य उनके इस निर्णय के विरूद्ध थे किन्तु धुन के पक्के सुनील जी ने सत्याग्रह आरम्भ कर दिया और उन्हें जेल जाना पड़ा। आपातकाल के इस दौर में वे 9 मास जेल में बंद रहे। अपने अद्भुत नेतृत्व का परिचय उन्होंने एक बार पुनः तब दिया जब वे बी.ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे। बिड़ला समूह की चिनार टैक्सटाइल की कठुआ स्थित फैक्ट्री में मजदूरों की‌ हड़ताल हो गई तो मिल मालिकों ने मजदूरों का दमन प्रारम्भ कर दिया जिस से हड़ताल उखड़ने लगी। सुनील जी को जब उद्योग मालिकों द्वारा मजदूरों पर की जा रही ज्यादतियों का पता चला तो वे हड़ताल में कूद पड़े और आंदोलन का नेतृत्व किया। मिल प्रबंधकों को उनके सामने झुकना पड़ा और मजदूरों की मांगे माननी पड़ी। सुनील जी की नेतृत्व क्षमता का यह अनूठा उदाहरण है।

 

आपातकाल की समाप्ति के पश्चात् जब छात्र आंदोलन चरमोत्कर्ष पर था और सुनील जी जम्मू में विद्यार्थी परिषद् का कार्य देख रहे थे तो उन्होंने कई छात्र आंदोलनों का सफल नेतृत्व किया। जम्मू में रहते उन्हें अपने पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश के कम्यूनिस्टों द्वारा छात्र राजनीति में जड़े फैलाने की सदैव चिंता रहती थी। उन दिनों हिमाचल प्रांत में विद्यार्थी परिषद् का कार्य न के बराबर था और सुनील जी इस बात से व्याकुल हो उठते थे। एक दिन अपनी इस बेचैनी को लेकर सुनील जी तत्कालिक संगठन मंत्री आलोक कुमार जी से मिले और परिषद् के कार्य विस्तार हेतु हिमाचल जाने की इच्छा जाहिर की आलोक जी की हामी के पश्चात् अगले दिन घरवालों को बिना बताये और इस बात की जरा‌ भी चिंता किए बिना कि बीए द्वितीय वर्ष में माईग्रेशन कैसे होगा, शिमला (हि.प्र.) के लिए रवाना हो गए। 

 

यह 1979-80 की बात है तब से सुनील जी के अथाह परिश्रम एवं लग्न से विद्यार्थी परिषद् के कार्यों को हिमाचल में नई दिशा एवं शक्ति का संचार प्राप्त हुआ। 1980-81 में हि.प्र. विश्वविद्यालय में MBA की प्रवेश परीक्षा में कम्यूनिस्टों ने विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ मिल कर धांधली की तो सुनील जी के दिशा निर्देश पर परिषद् के मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त आंदोलन प्रारम्भ किया, किन्तु जब सम्पूर्ण प्रशासन ने परिषद् को हलके से लिया और धांधली के विरुद्ध आँखें मूंदे रहे तो उन्होंने कुछ अन्य कार्यकर्ताओं के साथ आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। सुनील जी का स्वास्थ्य निरन्तर गिर रहा था, किन्तु जब तक पूर्ण प्रवेश प्रक्रिया को निरस्त नहीं किया गया एवं नये सिरे से प्रवेश प्रक्रिया नहीं हुई तब तक आंदोलन चलता रहा और आठ दिनों के उपरान्त आन्दोलन की सफलता के साथ अनशन की समाप्ति हुई। इसी वर्ष हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एक अन्य आन्दोलन छात्रावास की समस्या को लेकर हुआ। विश्वविद्यालय का एवालॉज भवन जो रिक्त पड़ा हुआ था और छात्र उसे छात्रावास में बदलने की मांग कर रहे थे, लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ढुलमुल रवैया अपनाये हुये था। ऐसे में सुनील जी ने कुछ अन्य कार्यकर्ताओं को साथ लेकर एवालॉज के ताले तोड़ कर वहां पर बिस्तर लगा दिये। छात्रों के दबाव में प्रशासन को उसे बाद में छात्रावास में बदलना पड़ा जिस का पूरा श्रेय सुनील जी के कुशल नेतृत्व में विद्यार्थी परिषद् को जाता है। इन आंदोलनों से प्रदेश में विद्यार्थी परिषद् की छवि एक जुझारू छात्र संगठन के रूप में स्थापित हुई और 1982 में कई महाविद्यालयों में छात्र संघ चुनावों में साधनों की कमी के बावजूद जीत अर्जित की। अगले ही वर्ष 1983 में हि.प्र. विश्वविद्यालय में भी अध्यक्ष के पद पर जीत अर्जित की और अधिकांश महाविद्यालयों में भी विजय हासिल की। तब से अब तक विद्यार्थी परिषद् हिमाचल में लगातार अग्रणी रही है।

 

सुनील जी एक कुशल संगठक थे और वे हर जीत का श्रेय अपने साथियों को देते थे। छात्र राजनीति में सुनील जी छात्र हितों को सर्वोपरि मानते थे और अपने संगठनात्मक एवं नेतृत्व कौशल से अन्य छात्र संगठनों को भी एक मंच पर लाने का सामर्थ्य रखते थे। विद्यार्थी परिषद् के कार्य के दृढीकरण एवं विस्तार हेतु सुनीत जी अपने आराम एवं स्वास्थ्य को परवाह न करते हुये लगातार प्रवास एवं कठोर परिश्रम से हिमाचल प्रदेश में विद्यार्थी परिषद् को सशक्त बनाने हेतु कार्य करते रहे। अपनी इस जीवन शैली से उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ने लगा और 1985 के पटना अधिवेशन के दौरान उनके मुंह से अचानक खून आ गया। डाक्टरी जांच में पता चला कि सुनील जो के फेफड़े खराब हो चुके थे। उन्हें दिल्ली में अस्पताल में दाखिल किया गया, फिर देख-रेख की दृष्टि से दिल्ली से मुम्बई लाया गया। लगभग 8 मास तक जीवन-मृत्यु से लड़ते हुये 12 नवम्बर 1985 को दिवाली के दिन सुनील जी का देहावसान हो गया।

 

 

 

 

 

Comments

Submitted by alikhanak5813 on Thu, 05/19/2022 - 21:53

Permalink

स्व. सुनील उपाध्याय जी बहुत अच्छे और भले कार्यकर्ता थे और वे हर एक प्रकार की जानकारी हिंदी में हम लोगो के मंच से साझा किया करते थे|

Submitted by shahzilmalik23 on Thu, 06/02/2022 - 16:12

Permalink

<a href=”uknewstak.com>news site</a>

Submitted by mansooriiriyaa on Sat, 06/04/2022 - 12:20

Permalink

बिड़ला समूह की चिनार टैक्सटाइल की कठुआ स्थित फैक्ट्री में मजदूरों की‌ हड़ताल हो गई तो मिल मालिकों ने मजदूरों का दमन प्रारम्भ कर दिया जिस से हड़ताल उखड़ने लगी। सुनील जी को जब उद्योग मालिकों द्वारा मजदूरों पर की जा रही ज्यादतियों का पता चला तो वे हड़ताल में कूद पड़े और आंदोलन का नेतृत्व किया। मिल प्रबंधकों को उनके सामने झुकना पड़ा और मजदूरों की मांगे माननी पड़ी। सुनील जी की नेतृत्व क्षमता का यह अनूठा उदाहरण है।

Submitted by heloattherated… on Wed, 06/29/2022 - 12:22

Permalink

यह 1979-80 की बात है तब से सुनील जी के अथाह परिश्रम एवं लग्न से विद्यार्थी परिषद् के कार्यों को हिमाचल में नई दिशा एवं शक्ति का संचार प्राप्त हुआ। 1980-81 में हि.प्र. विश्वविद्यालय में MBA की प्रवेश परीक्षा में कम्यूनिस्टों ने विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ मिल कर धांधली की तो सुनील जी के दिशा निर्देश पर परिषद् के मुट्ठी भर कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त आंदोलन प्रारम्भ किया, किन्तु जब सम्पूर्ण प्रशासन ने परिषद् को हलके से लिया और धांधली के विरुद्ध आँखें मूंदे रहे तो उन्होंने कुछ अन्य कार्यकर्ताओं के साथ आमरण अनशन प्रारम्भ कर दिया। सुनील जी का स्वास्थ्य निरन्तर गिर रहा था, किन्तु जब तक पूर्ण प्रवेश प्रक्रिया को निरस्त नहीं किया गया एवं नये सिरे से प्रवेश प्रक्रिया नहीं हुई तब तक आंदोलन चलता रहा और आठ दिनों के उपरान्त आन्दोलन की सफलता के साथ अनशन की समाप्ति हुई।

 

Submitted by heloattherated… on Wed, 06/29/2022 - 12:29

Permalink

सुनील जी का जन्म, जम्मू कश्मीर के कठुआ जिले में माता श्रीमति पदमावती एंव पिता श्री विद्या प्रकाश के घर 27 मार्च 1959 को हुआ था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी सुनील उपाध्याय जी में नेतृत्व की अपार क्षमता थी। बाल्यकाल में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आने से सुनील जी के इस गुण में परिपक्वता एवं दृढ़ निश्चितता का समावेश हुआ। वर्ष 1975 में जब देश पर आपातकाल थोपा गया तब सुनील जी दसवीं कक्षा के छात्र थे। आपातकाल के विरुद्ध छात्रों एवं युवाओं में अत्यन्त गुस्सा था और सुनील जी भी ऐसे युवाओं की पंक्ति में अग्रणी थे। छोटी सी आयु में ही इस काले कानून के विरुद्ध सुनील उपाध्याय जी ने सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। घर में बड़े भाई के विवाह की तैयारियां चल रही थी। इस लिए घर के सदस्य उनके इस निर्णय के विरूद्ध थे किन्तु धुन के पक्के सुनील जी ने सत्याग्रह आरम्भ कर दिया और उन्हें जेल जाना पड़ा। आपातकाल के इस दौर में वे 9 मास जेल में बंद रहे। अपने अद्भुत नेतृत्व का परिचय उन्होंने एक बार पुनः तब दिया जब वे बी.ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे। बिड़ला समूह की चिनार टैक्सटाइल की कठुआ स्थित फैक्ट्री में मजदूरों की‌ हड़ताल हो गई तो मिल मालिकों ने मजदूरों का दमन प्रारम्भ कर दिया जिस से हड़ताल उखड़ने लगी। सुनील जी को जब उद्योग मालिकों द्वारा मजदूरों पर की जा रही ज्यादतियों का पता चला तो वे हड़ताल में कूद पड़े और आंदोलन का नेतृत्व किया। मिल प्रबंधकों को उनके सामने झुकना पड़ा और मजदूरों की मांगे माननी पड़ी। सुनील जी की नेतृत्व क्षमता का यह अनूठा उदाहरण है।

Submitted by heloattherated… on Mon, 07/18/2022 - 23:10

Permalink

सा था और सुनील जी भी ऐसे युवाओं की पंक्ति में अग्रणी थे। छोटी सी आयु में ही इस काले कानून के विरुद्ध सुनील उपाध्याय जी ने सत्याग्रह करने का निर्णय लिया। घर में बड़े भाई के विवाह की तैयारियां चल रही थी। इस लिए घर के सदस्य उनके इस निर्णय के विरूद्ध थे किन्तु धुन के पक्के सुनील जी ने सत्याग्रह आरम्भ कर दिया और उन्हें जेल जाना पड़ा। आपातकाल के इसमें वे 9 मास जेल में बंद रहे। अपने अद्भुत नेतृत्व का परिचय उन्होंने एक बार पुनः तब दिया जब वे बी.ए. प्रथम वर्ष के छात्र थे। बिड़ला समूह की चिनार टैक्सटाइल की कठुआ स्थित फैक्ट्री में मजदूरों की‌ हड़ताल हो  और आंदोलन का नेतृत्व किया। मिल प्रबंधकों को उनके और मजदूरों की मांगे माननी पड़ी। सुनील जी की नेतृत्व क्षमता का यह अनूठा उदाहरण है।

what is the value of x

Submitted by alikhanak5813 on Mon, 01/09/2023 - 21:05

Permalink

sunil upadhyay ji bahut achhe vyaktitva ke insaan tha aur inke life style se mujhe bahut prerna milta hai.

<a href="https://cmcsb.org/top-10-ladkiyon-se-baat-karne-wala-app/">ladki se baat karne wala apps</a>